बार बार यू हि साफ करत है ।
मैल जुटाया दिन घडी छिनमे ॥ १ ॥
सहा न जाये मैल जो देखे ।
मनका मैल कोई आँख न देखे ॥ २ ॥
मन चंगा तो सब कुछ गंगा ।
पैदा हुए सब समान नंगा ॥ ३ ॥
खीँच खीँच तब दुनिया ढाके ।
अपनाही तन शर्मसे देखे ॥ ४ ॥
कर ले शर्म दुनियासे भाई ।
खुदकी छबि तो मनमे छाई ॥ ५ ॥
भला बुरा सब समझे जाने ।
आदतसे फिर मज़बूरी माने ॥ ६ ॥
धोवत धोवत कपडा फटत है ।
मजबूरीसे दिन कटत घटत है ॥ ७ ॥
कर ले पूरा अब रोना धोना ।
जहाँसे आये वही है जाना ॥ ८ ॥