शब्दरचना
हिरना समझ बुझ बन चरना ।
एक बन चरना, दुजे बन चरना, तिजे बन नहीं तू चरना ॥ १॥`
तिजे बन पारधी , उनके नज़र नहीं तू परना || २ ॥
तोहे मार तेरा मांस बिकावे , तेरे खाल का करेंगे बिछोना ॥ ३ ॥
पॉँच हिरना पचीस हिरनी , उनमे एक तू चतुर ना ॥ ४ ॥
कहे कबीरा सुन भई साधो , गुरुके चरण चित धरना ॥५ ॥\
सरगम
राग : मिश्र बिभास , ताल : केहरवा
दो ऋषभ, कोमल धैवत , निषाद वर्ज
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ध ध प ग । ग ग रें सा । सा रें म - । म - प - ।
हि र ना s । हि र ना s । स म झ s । बु झ s ।
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रें सा - ध । रें - सा - । सां सां ध प । ग ग रे सा ।
ब न s च । र s ना s । s s s s । हि र ना s ।। धृ ॥
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ध ध प ग । ग ध प - । प सा सा सा । ध प - प ।
ए क ब न । च र ना s । दु जे ब न । च र s ना ।
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सा सा सा सा । सा ध रै - । ग - रें सा । ध ध प ग ।
ति जे ब न । ना ही तू s । च s र ना । हि र ना s ॥ १॥
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ध ध प ग । ग ध प - । प सा - सा । ध प - प ।
ति जे ब न । पा र धी s । उ न s के । न ज s र ।
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ग ग - ग । रे सा - - । सा ध प प । ग ध - प ।
न ही s प । र ना s s । हि र ना s । हि र ना s ॥ २ ॥
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ध ध प ग । ग ध प प । ध - प प । ग प ध प ।
तो हे मा र । ते रा मां स । बि s का वे । s s s s ।
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ध सा सा - । रे सा - - । ध ध ध - । ग ध - प ।
ते रे खा s । ल का s s । क रें गे s । बी छौ s ना ।
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सा ध प प । ग ध - प ।
हि र ना s । हि र ना s ॥ ३ ॥
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ध - ध - । ग ध प - । ध प ग - । ग ध - प ।
पा s च s । हि र ना s । प चि स s । हि र s नी ।
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ध सा सा - । रे रे सा - । प ग ध प । ध सा ध प ।
उ न में s । ए के तू s । च तु र न । s s s s ।
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ग ध प प । ग रे सा - ।
हि र ना s । हि र ना s ॥ ४ ॥
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सा ध ग - । ग ध प - । सा सा रे रे । सा - ध प ।
के हे s s । क बी रा s । सु नो भ ई । सा s धो s ।
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ध सा सा सा । रे सा रे सा । ध - प प । ग - रे सा ।
गु रु के च । र ण चि त । ध s र ना । s s s s
ग ध प प । ग रे सा - ।
हि र ना s । हि र ना s ॥ ५ ॥
भावार्थ
हिरना समझ बुझ बन चरना ।
एक बन चरना, दुजे बन चरना, तिजे बन नहीं तू चरना ॥ १॥`
तिजे बन पारधी , उनके नज़र नहीं तू परना || २ ॥
तोहे मार तेरा मांस बिकावे , तेरे खाल का करेंगे बिछोना ॥ ३ ॥
पॉँच हिरना पचीस हिरनी , उनमे एक तू चतुर ना ॥ ४ ॥
कहे कबीरा सुन भई साधो , गुरुके चरण चित धरना ॥५ ॥\
सरगम
राग : मिश्र बिभास , ताल : केहरवा
दो ऋषभ, कोमल धैवत , निषाद वर्ज
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ध ध प ग । ग ग रें सा । सा रें म - । म - प - ।
हि र ना s । हि र ना s । स म झ s । बु झ s ।
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रें सा - ध । रें - सा - । सां सां ध प । ग ग रे सा ।
ब न s च । र s ना s । s s s s । हि र ना s ।। धृ ॥
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ध ध प ग । ग ध प - । प सा सा सा । ध प - प ।
ए क ब न । च र ना s । दु जे ब न । च र s ना ।
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सा सा सा सा । सा ध रै - । ग - रें सा । ध ध प ग ।
ति जे ब न । ना ही तू s । च s र ना । हि र ना s ॥ १॥
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ध ध प ग । ग ध प - । प सा - सा । ध प - प ।
ति जे ब न । पा र धी s । उ न s के । न ज s र ।
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ग ग - ग । रे सा - - । सा ध प प । ग ध - प ।
न ही s प । र ना s s । हि र ना s । हि र ना s ॥ २ ॥
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ध ध प ग । ग ध प प । ध - प प । ग प ध प ।
तो हे मा र । ते रा मां स । बि s का वे । s s s s ।
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ध सा सा - । रे सा - - । ध ध ध - । ग ध - प ।
ते रे खा s । ल का s s । क रें गे s । बी छौ s ना ।
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सा ध प प । ग ध - प ।
हि र ना s । हि र ना s ॥ ३ ॥
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ध - ध - । ग ध प - । ध प ग - । ग ध - प ।
पा s च s । हि र ना s । प चि स s । हि र s नी ।
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ध सा सा - । रे रे सा - । प ग ध प । ध सा ध प ।
उ न में s । ए के तू s । च तु र न । s s s s ।
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ग ध प प । ग रे सा - ।
हि र ना s । हि र ना s ॥ ४ ॥
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सा ध ग - । ग ध प - । सा सा रे रे । सा - ध प ।
के हे s s । क बी रा s । सु नो भ ई । सा s धो s ।
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ध सा सा सा । रे सा रे सा । ध - प प । ग - रे सा ।
गु रु के च । र ण चि त । ध s र ना । s s s s
ग ध प प । ग रे सा - ।
हि र ना s । हि र ना s ॥ ५ ॥
भावार्थ
ज्यादा तर संत काबोरदासजी रामभक्त रूपसे जाने जाते है । इनकी कुछ रचनाये नीतिशास्त्र पर भी पायी जाती है.। इन्हें पाखंड जराभी पसंद नहीं था । इनकी दोपाईया तथा चौपाइयां इस बातकी गवाही देती है । इनकी रचनाओंका और एक लुभावना अविष्कार निर्गुणी भजनोमे पाया जाता है । निर्गुणी रचनामे किसी एक भगवानकी स्तुति या प्रार्थना नहीं होती.। सब भगवन सगुणरूपसे दिखाई देते है और निर्गुण में तो गुणकी समाप्ति निर्देशित है । इसलिये ये विषय निर्गुणी भजन में त्याज्य है । प्राकृतिक नियम, जीव जगत तथा ईश्वर का परस्पर अवलम्बन , परब्रह्म का निर्देश आदि विषय निर्गुणी भजनमें प्रतिपाद्य होते है । प्रस्तुत रचना इस प्रकारकी निर्गुण रचना है ।
इसमें " जीव " के लिये " हिरन " तथा "जगत " के लिये "बन" की उपमा दी गयी है । दोनों उपमेय तथा उपमान के परे नित्य सत्य का निर्देश करते हुए इस बातको समझने के लिये गुरु की आवश्यकता कही गयी है । हिरनको समज़बुज़के बन चरने के लिये कहा गया है । चरना का मतलब सिर्फ घास चरना नहीं तो जीवनका उपभोग लेना अभिप्रेत है जो हर जीव यथा शक्ति करते रहता है ।
इन्सानकी जिंदगी चार अवस्थासे गुजरती है । प्रथम बाल अवस्था बादमे युवा अवस्था , तीसरे स्थान पर वृद्ध अवस्था और अंतिम मृत अवस्था मानीजाती है । चारोही अवस्था पुनरावर्ती मानी जाती है. । बचपन और जवानीमे हर इंसान अपनी निज प्रेरणाके अनुसार जिन्दगी बिताता है । जो प्रिय हो उसे पाना और रखना चाहता है और जो नापसंद हो उसे छोड़ना चाहता है । ये चाहना या न चाहना पुरब जन्मके संस्कारका फल स्वरूप है । अपनी अहंकार में फसा हुआ इंसान ज्यादा करके पहली दो अवस्थामे अपनी नैसर्गिक प्रेरणाके बारेमे कुछ सोचे ना तो भले न सोचे लेकिन जब तीजा बन याने तीसरी वृद्धावस्था आने पर सोचने पर मजबूर हो जाता है । तीजे बन में न चरने के लिये कहा है । जीना किसे छुटा है ? यहाँ "समज़बुज़" की बात दिखने लगती है । जियो लेकिन आसक्ति छोड़के । ये " समज़बुज़" का जीना है । प्रेयस छोड़के श्रेयस स्वीकारना यही बात न चरने के बराबर है ।
तीजा बन याने बुढ़ापे में इंसान मृत्युकी मृयुकि आशंकासे भयभीत हो जाता है । शास्रोँके अनुसार मृत्युकी देवता यमराज मानी गयी है । ये यमराज अपना काम अपने यमदूतोंसे करवाते है । यमदूत अपनी फाँसमे बाँधके इंसानको खींचके मृत्यु के तरफ ले जाते है । यमदूतोंको इस चरणमे " पारधी" ऐसी उपमा दी गयी है । चेतावनी दी गयी है इनकी नजरसे बचना ।
ये पारधी तुम्हें मारकाट तेरा मांस बेचेंगे तथा तुम्हारी खालका इस्तेमाल बिछाने जैसा करेंगे ऐसा डरावना चित्र दिखाया है। अभी तक जो खानेवाला था वो अब खाद्य बनेगा । इसमें इसी जगतसे पायी सभी संपत्ति समाविष्ट करे तो चित्र साफ नज़र आता है । लोग मरे हुए इंसान के \प्रति दुःख कम करते है । उसकी जाय्दादके बटवारेमे ज्यादा रूचि रखते है । यु तो ये काम परिवार के सदस्य करते है जो जगत का सबसे नजदीकी हिस्सा होता है. ।
इतनी चेतावनी देनेका बाद कबीरजी कुछ दिलासा देनेका काम करते है । हिरन यानि जीव को " चतुर " सम्बोधित करते है । इस चरणमे पाच औए पचीस संख्या का संकेत मुलतत्वोंसे है । जो जीव तथा जगत दोनोमे एक जैसे समाये है । इसलिये जो खून एक इंसान को लाल दिखता है वो दुसरेकोभी "लाल " ही दिखता है । इन मूल तत्त्वके परे एक नित्य और शाश्वत तत्त्व है जो कोई चतुर हि समझ सकता है । ऐसा तू हि एक चतुर है ऐसा कहकर उत्तेजन दिया गया है ।
आखिरमें ये सब "गुरु " के माध्यमसे ही शक्य है इसलये अपना चित्त गुरुके चरण में धरो ऐसा उपदेश किया है। कबीरजी की नाम मुद्राका एक अविभाज्य भाग है " सुन भई साधो " । सबको नहीं पुकारा गया है सिर्फ भाई और साधु लोगोंका समावेश हुआ है इसपर ध्यान दिया जाये । तथा ये गुरु कोई एक व्यक्ति या संस्था नहीं तो अपनहि निजस्वरूप अपनेको हि दिखाने हेतु सामने आया हुआ एक निमित्त है । इस सम्भावना पर चिंतन करे तो सत्य दर्शन संभव है ऐसा बताते हुए भजनकी समाप्ति की है ।
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