Saturday, March 4, 2017

SAFAI


बार बार यू  हि साफ करत है  ।
मैल जुटाया दिन घडी छिनमे  ॥ १ ॥

सहा न जाये मैल जो देखे  ।
मनका मैल कोई आँख न देखे  ॥ २ ॥

मन चंगा तो सब कुछ गंगा ।
पैदा हुए सब समान नंगा  ॥ ३  ॥

खीँच खीँच तब दुनिया ढाके  ।
अपनाही तन  शर्मसे देखे  ॥ ४ ॥

कर ले शर्म दुनियासे भाई  ।
खुदकी छबि तो मनमे छाई  ॥ ५ ॥

भला बुरा सब समझे जाने  ।
आदतसे फिर मज़बूरी  माने ॥ ६ ॥

धोवत धोवत कपडा फटत है  ।
मजबूरीसे दिन कटत घटत है  ॥ ७ ॥

कर ले पूरा अब रोना धोना ।
जहाँसे आये  वही है जाना  ॥ ८ ॥





No comments:

Post a Comment